kabir das ya satguru kabir sahab?
क्या संत सम्राट शिरोमणि सतगुरु कबीर साहब जी के गुरु रामानंद थे?
Sant Kabir sahab जी के बारे मे यह भी एक कहानी पर्चलित है की उनके गुरु रामानंद जी थे जबकि इतिहास गवाह है कि 14-15 सदी में वर्ण व्यवस्था चरम शिखर पर थी जिसमें चतुर तीनों वर्णो को ऊँचा और चौथे वर्ण एवं वर्ण से बाहर की जातियाँ को नीचा माना जाता था जिन्हे उनके अधिकारों से वंचित भी रखा गया था उस समय शुद्र और मुस्लिम से दूरी बना के चला जाता था उनकी छाया भी जहर सम्मान समझा जाता था तो ऐसे मे इस समाज संत सम्राट शिरोमणि सतगुरु कबीर साहब जी को उनके बचपन मे केसै रामानंद जी ने शिष्य बना लिया होगा यदि ऐसा होता तो उनकी जाती के लोग उन्ही को जाती से निकाल देते इसी से महज एक झुट के कुज भी नही है और दूसरी बात शिषय मे उसके ही गुरु के गुण दिखते है जैसे की रामानंद वर्ण व्यस्था को मानते थे जाती प्रथा के हितकारी थे वहीं संत सम्राट शिरोमणि सतगुरु कबीर साहब जी जाती वर्ण को नकारते थे जहाँ रामानंद ईश्वर वादी था वहीं संत सम्राट शिरोमणि सतगुरु कबीर साहब जी ईश्वर को नकारते थे जैसे की उनका दोहा भी मशहूर है पाथर पूजे हरि मिले तो मे पुजू पुरा पहाड़ ऐसे दो विपरीत विचारधारा के दो लोग आपस गुरु और चेला कैसे हो सकते है यह कहानी झूठी सिद्ध होती है।
kabir das ya sant kabir sahab
satguru kabir sahab ji ke sath yadi Kabir das shabd istemal kia jayega to galt he satguru kabir sahab ji ko hume respect deni chahie jiske lie unhe kabir das ki jagah satguru kabir sahab ji kehna chahie ya kabir das ji jagah ap sant kabir sahab bhi keh sakte he per satguru ji ko respect jrur dijie unka yogdan samaj ke prati bahut he.
सतगुरु कबीर साहब जी ने अपने दोहों मे सव्यं को कोरी और जुलाहा कहा है, ज्यों कोरी रोजा बुने, नीरा आवे छोर। ,
कहत कोरा कोरी कबीर जन मानस
आप सुत काते कपड़ा जत होय फकीर।
मन दिया कहुँ और ही, तन साधुन के संग | कहैं कबीर कोरी गजी, कैसे लागै रंग। संत कबीर द्वारा उक्त वचनों के आधार पर हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते है कि कबीर साहब कोरी जाती से थे – भिक्खु धम्मरक्षित ने भी वर्तमान कोरी जाती को प्राचीन कोलीय वंश की ही जाती माना है। मध्य युग में यवन के अकर्मणो से बहुत कष्ट भोगना पड़ा, अत ये कोलीय ही मुस्लिम धर्म मे घुल मिल गए जिन्हे जुलाहा कहा गया। पर कबीर साहब जी की दूसरी पीढ़ी ने इस्लाम क़बूला होगा चूंकि उनके माता पिता के नाम भी मुस्लिम नामों से नही मिलते है इसलिए जिन कोरी यानी कोली जाती के लोगों ने अपना धर्म बदला उन्होंने अपना व्यवसाय कपड़ा बुनना ही रखा जिस कारण धर्म बदलने के बाद भी वो लोग स्वयं को कोरी या जुलाहा बोला करते थे। तो निष्कर्ष यह निकलता है की कबीर साहब कोरी/जुलाहा जाती से थे।
संत सम्राट शिरोमणि सतगुरु कबीर साहब जी के जन्म के बारे में एक धरना समाज में फैलाई जाती हे की वो विधवा ब्राह्मणी के पुत्र थे जिन्हे विधवा ब्राह्मणी ने लहर तारा तलब के किनारे फेंक कर चली गयी थी जिन्हे कोरी जाती के पति पत्नी नीरू और नीमा नमक बुनकरों ने संत सम्राट शिरोमणि सतगुरु कबीर साहब जी को पाला। जबकि यह एक मात्र गपोड़ कहानी के और कुछ नहीं जिससे उस समय के तथाकथित धर्म के फर्जी ठेकेदारों ने इसलिए गड़ा ताकि कहीं कोरी जाती जिससे उस समय धर्म के ठेकेदार अपने बराबर नहीं समझते थे ऐसी जाती में ऐसे महान संत सम्राट शिरोमणि सतगुरु कबीर साहब जी के जन्म से कहीं उनकी जाती की एहमियत या उनका धंधा न ख़त्म हो जाये क्योकि उस समय संत सम्राट शिरोमणि सतगुरु कबीर साहब जी के ज्ञान के आगे बड़े बड़े गुरु मंडलेश्वर अदि नतमस्तक होते थे और उनके ज्ञान से सालो से सताए हुए लोग जीवन का अर्थ जान सतगुरु जी के शिष्य बनने लग गए जिसका एक कारण यह भी था की सतगुरु जी की बढ़ती लोक प्रियता को देख ब्राह्मणो को भी उनके ज्ञान के आगे झुकना पड़ा और उनके ज्ञान को मानना पड़ा जिस कारण इन लोगो ने कबीर साहब को विधवा ब्राह्मणी जैसी मन घडन्त कहानी द्वारा यह दिखने की कोशिश की के संत सम्राट शिरोमणि सतगुरु कबीर साहब जी जैसे महापुरुष सिर्फ ब्राह्मण समाज में ही पैदा हो सकते अन्यथा उस समय न तो डीएनए द्वारा जाँच होती थी फिर किस आधार पे यह पता चला की यदि किसी विधवा ब्राह्मणी ने उस बचे को जन्म दे लहर तारा पे फेंक के चली गयी यह महापुरुष वही हे न ही cctv कैमरा था जिसके आधार पे मान लिया जाये की निरु नीमा में जन्म नहीं दिए बल्कि वहां से बचा उठाया था बिना किसी ठोस प्रमाण के हम कैसे मान सकते हे ही कबीर साहब विधवा ब्राह्मणी के पुत्र जबकि उस समय महिलाओं के घर बहार जाना भी पाप समझा जाता था तो कैसे उस समय वो बिना पति बचे को गर्भ में धारण कर सकती थी और ३ महीने में ही महिला का पेट दिखने लगता हे जिससे साफ पता चल जाता हे की वो प्रेग्नेंट हे तो उस महिला के परिवार को कैसे नहीं पता चला की उनकी विधवा भाभी या बहु या बेटी प्रेग्नेंट हे यही से यह कहानी झूट साबित होती हे जिससे खास जाती के लोगो ने अपनी जाती श्रेष्ट को बचाने के लिए गड़ा था और संत सम्राट शिरोमणि सतगुरु कबीर साहब जी अपने माँ बाप नीरू नीमा के ही पुत्र थे।
सतगुरु कबीर साहब जी के जन्म के विषय मे अनेको झूठी कहानियों मे से एक यह कहानी भी है जिसमें कुज लोगों द्वारा यह कहानी फेलाई जाती है कि संवत 1455 की ज्येष्ठ महीने की पूर्णिमा को सोमवार के दिन सत्यपुरुश का तेज लहर तारा तालाब में उतरा जब यह नूर का तारा उतरा तो तालाब जगमग होने लगा यहाँ नूर के गोले का अर्थ, प्रकाश के विशाल पुंज से है और यह सभी को विदित है कि आकाश मे ऐसा प्रकाश का गोला सूर्य ही है ला जो लोग विज्ञान की जानकारी रखते है, वो जानते है कि आज विज्ञानिको ने यह सिद्ध कर दिया है कि आसमाँ मे ऐसे कई चंद कई सूर्य मौजूद है इसमें यह सोचने वाली बात है गपोडियों ने कहीँ नही बताया कि कौन से सूर्य की बात यह लोग कर रहे है कौन से सूर्य को इन्होंने लहर तारा तेलाब पे उतरते इन्होंने देखा दूसरा सूर्य की दूरी धरती से 149600000 कि मी है जिसकी एक किरण को धरती पे आने मे 8 मिनट का समय लगता है जिसपे जून के महीने मे सूर्य धरती को अपनी गर्मी से इतना तपा देता है की नंगे पाओ आपके पाओ जला देता है उसपे फिर आठ मिनट का समय लगा सूर्य कबीर जी को प्रकट करने के लिए यदि आया हो धरती पे तो जिस सूर्य पे लाखों धरती आ सकती है उसमे सूर्य कैसे आया यदि आया तो जून की गर्मी उपर से सूर्य महाराज खुद धरती पे हो तो वराणसी मे सब कुज जल जाना चाहिए जो हुआ नहीं आज भी 5 हजार पुरानी संस्किती के अवशेष मिलते है लाखों साल पहले जीवित डाईनासोर के अवशेष और उल्का पिंडों से हुए नुक्सान के अवशेष मिलते है तो उस समय सूर्य के आने से हुए नुक्सान का एक भी अवशेष कियों नही मिलता है इसी से गपोड कहानी एक झुट से अधिक कुज साबित नहीं होती।