When Were the Koli/Kori Weavers of the First Indian Flag Honor?
देश को आजाद हुए 78 साल हो चुके है ठीक आजसे 78 साल पहले जब देश आजाद हुआ तब इस देश के कोलीय वंश की कोली कोरी पान बुनकर जाती ने ही आज से 78 साल पहले देश के आजाद होने के बाद प्रथम झंडा अपने हाथों से बुनकर भिजवाया था जिससे उस समय के आजाद भारत देश के प्रथम प्रधान मंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने फहराया था जिससे आज भी इतिहास मे बताया जाता है पर उस झंडे को बनाने वाले लोगो को इतिहास मे से जैसे भुला ही दिया गया हो जबकि इस वंश का प्रथम झंडा बनाने के साथ साथ देश की आजादी मे भी एक बड़ा योगदान था जिसमें झलकारी बाई कोरी, राघोजी जी भाँगरे, कान्होजी आंग्रे कोली जैसे लाखों कोली कोरी लोगों ने अपना बलिदान दिया पर अफसोस है इतिहास मे उन्हे आज भी वो जगह नहीं दी जा रही है जो इस समाज को मिलनी चाहिए थी,
चौथ मल महावर और नानग राम महावर ने देश आजाद होने पे पहला झंडा राजस्थान के दोसा जिला के गॉव आलूदा में बुनना था
नानग राम महावर के बेटे नथु लाल ने एक इंटरव्यू मे बताया की देश का प्रथम झंडा हमारे पूर्वजों द्वारा बनाया गया था जिससे 15 अगस्त 1947 को दिल्ली ले जाया गया था।
और उन्होंने कहा की यह हमारे लिए गर्व की बात है की हमारे बड़ों ने देश का प्रथम झंडा बुना था।
बृज मोहन जी जो कि चौथ मल के भतीजे है उन्होंने बताया की आज भी वो अपनी जातीय पेशे के साथ जुड़े हुए है और इस कार्य को खादी ग्राम के साथ जुड़ कर रहे है
और यह उमीद करते है की हमारी जातीय परंपरा को हमारे बच्चे जरूर आगे लेकर जायेंगे।
नथु लाल ने भी बताया की वो भी बुनकरी के साथ जुड़े हुए थे और उमीद करते ही देश में इस परंपरा को बढ़ाने के लिए सरकार और कार्य करेगी जिससे नई पीढ़ी और भी खाकी के साथ जुड़ सके।
अनिल शर्मा ने बताया की झंडा आलूदा से बन कर स्वतंत्रसेनानी देशपांडे और तात साहब द्वारा गोविंदगढ़ भेजा गया था और उसके बाद अलवर मे इससे तीन रंगो में रंगा गया था फिर स्वतंत्रसेनानी झंडे को दिल्ली लेकर गए जहाँ देश के और भी तीन हिस्सों से झंडे भेजे गए थे इसलिए शर्मा जी का मानना है की निश्चित नही है की उस रात आलूदा दोसा का ही झंडा फहराया गया था या अन्य पर यह सच है की राष्ट्रीय झंडा इस गाव मे ही बुनना गया था ।
आज भी कोली कोरी समाज के घरों मे हमे चरखा आम रूप से देखने को मिल जाता है जो की इस जाती वंश के परंपरा के साथ जुड़ा हुआ था।
आज भी आलूदा गाव जो की खादी ग्रामुद्योग संस्थान का केंद्र है आज भी खादी की सप्लाई सरकार को झंडे बुन कर सरकारी कार्य कर्मों मे भेजते है।
चिरंजिलाल ने एक इंटरव्यू मे यह भी बताया की उन्हे 15.5 मीटर खादी के कपड़े के लिए 225 रुपए मिलते है पुरा झंडा बनाने के लिए उन्हे 2 दिन तक लग जाते है इतने कम पैसे मे परिवार पालना मुश्किल हुआ है।